कच्चा खानेकी कला
Day 1.= (1) कुपच और सुपच
मनुष्य को अपने समस्त अविष्कारों में आग के अविष्कार पर अधिक अभिमान है और साधारणतः सभ्यताका मापदंड विभिन्न प्रकार से आग को बनाने और उस आग का उपयोग कर सकने की छमता है ।
सभ्यता के आदि काल में ही मनुष्य ने आग की सहायता से भोजन को पकाने की कला विकसित की ।
पेड़ -पौधे पर फल या अन्न के दाने के पकने का अर्थ दूसरा है और आग पर पकने का इससे भिन्न । पेड़ पर फल तब पका कहा जाता है जब उसके भीतर का बीज पूर्णता को प्राप्त हो गया हो और अधिकतर वह बोने के योग्य अर्थात अपनी वंस परंपरा को विस्तृत करने के पूर्ण योग्य बन गया हो , पर आग पर पकाये गए बीज बोने की दृष्टि से निकम्मे माने जाते हैं । संसार के समस्त प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है , जो अपना भोजन आग पर पकाता है । मानों आज हम मनुष्य की परिभाषा ही यह कर सकते हैं कि वह पशु है जो अपना भोजन आग
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